भारतीय राजनीति पर प्रकाश डालती दृष्टि...
मधुमेह का मारा मैं एक सुबह मॉर्निंग वॉक की कठदौड़ से लौटा तो घर में अखबार की एक फोटो पर आंख ठहर गई। ठहर क्या चिपक-सी गई। टकटकी लगाए रहा देर तक। खामख्वाह। बात क्या थी कि यहां कुछ लिखा नहीं जा रहा लेकिन इस हवाई दोस्त मंडली में उस सच को साझा कर लेने को जी बहुत जोर मार रहा है। जैसे गले में कुछ अटक गया हो या कलेजे का पत्थर हल्का कर लेने की बेताबी। फोटो के पीछे क्या है? जितना फूहड़ और विद्रूप, उससे हजारगुना ज्यादा डरावना स्मृतियों का एक असहनीय झोंका। फोटो एक कैबिनेट मंत्री की। वह मंत्री केंद्र का या किसी प्रदेश का, भेद खोलना ठीक नहीं। बस इतना जान लीजिए कि उसके चेहरे और वस्त्र की शालीनता-सुघरता देख कर रोंगटे खड़े हो गए।
फोटो को बड़े गौर से घूरा। बार-बार चित्र के नीचे लिखा परिचय पढ़ा। उसी झटके में वह पूरी खबर पढ़ गया। स्कूल के दिनो में हमारे घर गांव क्या, पूरे जिले में तीन बड़े डाकुओं का आतंक हुआ करता था। उनमें एक डाकू मेरी मौसी के गांव शिवरामपुर का निवासी था। दीना नाम था उसका। पूरे गांव की महिलाएं सोने-चांदी से लदी-फदी उसकी बीवी के पांव छुआ करती थीं। मौसी ने बताया था कि ये दीना डाकू की मेहरारू (बीवी) है। दीना डाकू के प्रशंसकों में मेरी मौसी का परिवार भी शामिल था। प्रशंसा इसलिए कि दीना शिवरामपुर समेत आसपास के गांवों में चोरी-डकैती नहीं पड़ने देता था। पुलिस भी किसी परेशान नहीं करती थी। बस, अपने गांव-जवार पर यही दीना की बहुत बड़ी नियामत थी।
फोटो ने चिंतित कर दिया। क्या दिन आ गये हमारे मुल्क की राजनीति के। किसी जमाने में खूंख्वार अपराधी रहे राजनेतानुमा वह कैबिनेट मंत्री फोटो, और आला अफसर उसके पीछे-पीछे पूरी विनम्रता से फाइलें लिए दौड़े जा रहे थे। वह किसी संत की तरह गंभीर मुद्रा में अपनी वैसी ही छद्म सौम्यता से अफसरों को कृतकृत्य कर रहा था, जैसे मौसी के गांव को दीना....।
वंशावली खोलो तो कइयों की ऐसी ही पता चलेगी। कौन खोले बिल्लों के गले की घंटी।
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