प्यासा अंजुम का पहला नाम विजय उप्पल है। आटो मोबाइल इंजियरिंग में प्राइवेट और सरकारी नौकरी में जूनियर इंजीनियर के पद से रिटायर्ड होने के बाद से अदबी सफ़र ज़ारी है। वह मुख़तिल्फ़ ज़ुबानों में उर्दू, हिन्दी, पंजाबी, डोगरी आदि में शायरी करते हैं।
दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के मशहूर शायर ‘प्यासा’ अंजुम के गजल संग्रह ‘मेरे कलम से’ का लोकार्पण आयोजित हुआ, जिसमें देश भर से आये कवि-साहित्यकारों को सम्मानित भी किया गया। शायर अंजुम ने अपनी पुस्तक के अनावरित होने के इस मौके पर कहा कि उनके चालीस सालों की तपस्या और पुस्तक प्रकाशन का सपना पूरा हुआ है। प्यासा अंजुम का पहला नाम विजय उप्पल है। आटो मोबाइल इंजियरिंग में प्राइवेट और सरकारी नौकरी में जूनियर इंजीनियर के पद से रिटायर्ड होने के बाद से अदबी सफ़र ज़ारी है। वह मुख़तिल्फ़ ज़ुबानों में उर्दू, हिन्दी, पंजाबी, डोगरी आदि में शायरी करते हैं। उन्हें शायरी की हर सिन्फ़ में तबाआज़माई, ग़ज़ल-गीत और भजन में ख़ास मुक़ाम मिला है। उनके अदबी मुक़ाम फिल्म, रेडिओ, दूरदर्शन, मीडिया के साथ एकेडमिक एवं अदबी संस्थाएं रही हैं।
इस संकलन की एक-एक गजल मानो हजार-हजार मायने लेकर चलती है-
मुल्क और अपने सूबे के ताजा हालात को भी वह अपने बारीक लफ्जों से फिसलने नहीं देते हैं। इन मुहावरेदार पंक्तियों में वक्त की नजाकत कुछ इस तरह बयां होती है-
प्यासा अंजुम के शब्दों में देश की गरीब और मेहनतकश आबादी का भी दुख-दर्द सहज-सहज शब्दों में कुछ इस तरह छलक उठता है-
वक्त की ओर इशारा करते हुए वह अपनी इन चार पंक्तियों में वह बहुत कुछ कह जाते हैं-
गजल की नजाकत, वो तेवर, वो नफासत, वो अंदाज, वो बयां, जो दिल के तारों में तरंग पैदा कर दें, अहसास को जगाकर झंकार पैदा कर दें और उर्दू जुबान की मिठास से रू-ब-रू करा दें। जब ऐसी गजल के शेर पढ़ते-पढ़ते हमारे अंदर घुलने-मिलने लगें तो समझिए, ये हमारी-आपकी दास्तां है। शेर, जो जिंदगी के तमाम खट्ठे-मीठे तजुर्बों का, अनकहे खूबसूरत अहसासों का अक्स है, जिनमें इंसानी फितरत अपने अलग-अलग रूपों में नुमाया होती है।
अफरोज आलम की शायरी में इश्क-ओ-मुहब्बत की अदायगी ही नहीं, दुनियावी फिक्रोफन को भी बड़ी संजीदगी से तवज्जो दी गई है, जो शायर के सोच को बड़े फलक पर लाकर खड़ा करती है, मसलन-
कुछ वाकिये इंसान उम्र के किसी भी मकाम पर न भूलता है, न उसकी कसक कम होती है बल्कि वो हमेशा के लिए दिलओदिमाग पर चस्पां हो जाते हैं। 'कसक' इसी तरह की नज्म है। 'ग्लोबलाइजेशन' में दुनिया के आज और कल की फिक्र है। एक चेतावनी है कि अब संभल जा ताकि आने वाले वक्त में हमारी आदतें और हरकतें कहीं हमें शर्मसार न कर दें।
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