जयचंद की इस पहल ने उसके पिता को 10 बीघा जमीन का मालिक बना दिया है। आज रायचंद 100 से भी अधिक पेड़ों के बीच रहता है। इन पेड़ो में देवदार, अखरोट और सेब जैसे फलों और अन्य पेड़ों का बागीचा है।
किताबों में, सेमिनारों में हर जगह पेड़ों की महत्ता की बात की जाती है। बच्चों को ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने और हरियाली का रक्षक बनने की सिख दी जाती है। हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस समारोह में हिस्सा लेने के बाद सैकड़ों स्कूली बच्चे अपने मन में पेड़-पोधौ को को लगाने की प्रेरणा अपने मन में लेकर घर लौटते हैं। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर का एक किशोर भी इसी प्रेरणा के साथ बंजर भूमि को हरे-भरे क्षेत्रों में बदलना चाहता है। 17 साल का जयचंद नोहरधर से 90 किलोमीटर दूर भांगड़ी गांव का निवासी है। जहां जाने के लिए खड़ंजे का रास्ता अपनाना पड़ता है और लगभग 30 मिनट तक खड़े पहाड़ पर चढ़ाई करनी होती है।
जयचंद ने पिछले तीन सालों में वनों की कटाई की रोकथाम की दिशा में विशेष काम किया है। यह काम एक छोटी सी पहल के रूप में जयचंद ने जब शुरू किया जब वो 8वीं कक्षा में था। जयचंद ने उस दिशा में कार्य करना शुरू किया जहां लोगों का यह मानना था कि यह बंजर भूमि है और यहां सिर्फ घास के अलावा और कुछ पैदा नहीं हो सकता। जयचंद ने बंजर भूमि में पौधे लगाए, सड़क के किनारे पौधे लगाए, साथ ही स्कूल के अंदर भी पौधे लगाया। जयचंद की इस पहल ने उसके पिता को 10 बीघा जमीन का मालिक बना दिया है। आज रायचंद 100 से भी अधिक पेड़ों के बीच रहता है। इन पेड़ो में देवदार, अखरोट और सेब जैसे फलों और अन्य पेड़ों का बागीचा है।
जयचंद का कहना है कि मुझे पेड़-पौधो पर किसी भी तरह का कोई खर्च करने की जरुरत नहीं पड़ी। मैं पौधो की नर्सरी में जाता था और छोटे पेड़ों को खोजता था। मैं पौधो की खोज में जंगलों में जाता हूं, उन्हें घर लाता हूं। मेरे पिता ने इन पौधो को बड़ा करने में मेरी बहुत मदद की है। उन्होंने उनकी देखरेख करने में मेरी मदद की है। अपने इस नेक और जरूरी काम से जल्द ही रायचन्द ने सरकारी उच्चविद्यालय चोकर में छात्रों को प्रेरित किया, जहां से रायचन्द ने 10 वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। चंद के शिक्षक सुरिंदर पुंडेर ने भी उस पर एक लघु वृत्तचित्र बनाया है, जिसे वह अन्य स्कूलों के साथ साझा करने की उम्मीद करता है। पुंडेर कहते हैं, 'चंद के कारण, अपनी इच्छा से वृक्षारोपण कर रहे छात्रों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है।'
चंद को पौधो के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, न ही पौधो की किस्मों के बारे में ज्यादा कुछ पता है। चंद सिर्फ इतना जानता है कि पेड़-पौधो और जंगल ऑक्सीजन का सबसे अच्छा स्रोत है, जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए आवश्यक है। चंद के पास पौधो का कोई रिकोर्ड नहीं है। वह मानसून के मौसम में पौधे लगाना का काम करता है, इस मौसम में गढ्ढे की खुदाई आसानी से हो जाती है और पानी की भी आवश्यकता नहीं होती है। अप्रैल में चंद ने अपने अभियान के बारे में शिमला के पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के निदेशक को एक पत्र लिखा उसके बाद पर्यावरण के नेतृत्व के पुरस्कार के लिए उनका नाम विशेष सम्मान के लिए चुना गया, जिससे उन्हें राज्य का सबसे कम उम्र के विजेता बना दिया गया। पिछले महीने मुख्यमंत्री ने चंद को इस सम्मान से पुरस्कृत किया।
प्रिंसिपल सेक्रेटरी (वन और पर्यावरण) तरुण कौर कहते हैं, 'लोग आम तौर पर अनुदान या दान मांगकर ऐसा काम करते हैं, लेकिन रायचन्द ने यह काम खुद अपनी इच्छा से किया।' इस बीच, चंद ने अपने लक्ष्यों को मिलाकर एक बड़ा लक्ष्य बना दिया है। अब वह एक बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण की योजना बनाएगा और एक अरब पौधो को लगाने का कार्य करेगा।
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